नमस्कार, रणभूमि शृंखला के 12वें दिन में, मैं आपका सूत्रधार अनुज, आपका स्वागत करता हूँ।
11वें दिन अपना वचन ना निभा पाने की वजह से द्रोण बहुत लज्जित हुए। उन्होंने दुर्योधन के साथ योजना बनाई कि यदि कोई अर्जुन को युद्धक्षेत्र में दूर ले जाए तब ही युधिष्ठिर का पकड़ा जाना सम्भव होगा। इस पर त्रिर्गतराज सुशर्मा और उसके पाँचों भाइयों सत्यरथ, सत्यवर्मा, सत्यव्रत, सत्येषु और सत्यकर्मा ने शपथ ली कि या तो भूमि अर्जुन से सूनी हो जाएगी या फिर त्रिर्गतों से। 12वें दिन के युद्ध की शुरुआत में ही इन संशप्तकों द्वारा ललकारे जाने पर अर्जुन उनकी ओर युद्ध हेतु भूखे सिंह की भाँति मृगों से भूख मिटाने चल पड़ा।
यह देख दुर्योधन की सेना युधिष्ठिर को बन्दी बनाने के लिए प्रयत्न करने लगी और दोनों सेनाएँ नदियों के संगम की भाँति आपस में भिड़ गईं।
संशप्तक चन्द्राकर व्यूह बनाकर अर्जुन की प्रतीक्षा कर रहे थे। संशप्तक अर्थात वह योद्धा जिसने बिना सफल हुए लड़ाई आदि से ना हटने की शपथ खाई हो। संशप्तकों ने अर्जुन पर कई-कई बाणों की वर्षा करके उसे घायल किया जिसके उत्तर में अर्जुन ने भी तीखे बाणों द्वारा संशप्तकों को घायल कर दिया। सर्वप्रथम सुधन्वा ने अर्जुन के हाथों मृत्यु का आलिंगन किया। जिसे देखकर उसकी सेना भाग खड़ी हुई। इस दिन अर्जुन का सामना नारायणी सेना से हुआ जिस पर अर्जुन ने त्वाष्ट्र नामक अस्त्र का सन्धान किया। इसके फलस्वरूप नारायणी सेना के योद्धा एक-दूसरे को ही अर्जुन मानकर अपनी ही सेना पर प्रहार करने लगे। इसके बाद उस दिव्यास्त्र ने कई सहस्त्र वीरों को यमलोक पहुँचा दिया। अर्जुन पर कई सारे बाणों की वर्षा आरम्भ हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि ना तो अर्जुन का ध्वज दिखाई दे रहा था, ना रथ और ना ही स्वयं अर्जुन। इसका उत्तर अर्जुन ने वायव्यास्त्र चलाकर दिया। कितने ही नरमुण्ड धरती पर कटकर गिर गए।
दूसरी ओर द्रोण गरुड़ व्यूह बनाकर युधिष्ठिर की ओर बढ़ रहे थे। युधिष्ठिर भी मण्डलार्ध व्यूह बनाकर अपनी सेना लिए तैयार खड़े थे। धृष्टद्युम्न ने युधिष्ठिर की रक्षा का वचन दिया और द्रोण तथा अन्य कौरव सेना से भिड़ने के लिए आगे बढ़ा। द्रोण ने अपने बाणों की वर्षा से युधिष्ठिर की सेना को तहस-नहस कर डाला। ऐसी मार-काट आरम्भ हो गई कि शत्रु-मित्र का भेद ही समाप्त हो गया। द्रोण, युधिष्ठिर के निकट पहुँच चुके थे। परन्तु युधिष्ठिर की रक्षा हेतु सत्यजित वहाँ उपस्थित था। उसने द्रोण पर आक्रमण कर दिया। द्रोण को घायल करते हुए सत्यजित ने उनके सारथी को भी मूर्छित कर दिया। यह देखकर पांचाल वीर वृक ने भी द्रोण को घायल करना आरम्भ कर दिया। इसके उत्तर में द्रोण ने सत्यजित का मस्तक शरीर से अलग कर दिया। जिसे देखकर युधिष्ठिर उस युद्ध स्थल से भयभीत होकर दूर चले गए। युधिष्ठिर की रक्षा के लिए कई शूरवीर योद्धा आगे आए लेकिन द्रोण ने दृढसेन, राजा क्षेम, वसुदान, पांचाल राजकुमार को यमलोक भेज दिया और युधिष्ठिर की ओर बढ़ते रहे। पाण्डव सेना को भयवश भागता देखकर दुर्योधन अत्यन्त प्रसन्न हो गया।
युद्ध बहुत ही विकराल रूप में तब पहुँचा जब भीमसेन और अन्य महारथी द्रोण से युद्ध करने के लिए आगे आए। इस समय गजरथी के तौर पर सबसे प्रधान योद्धा माने जाने वाले भगदत्त ने पाण्डव सेना में भगदड़ मचा दी। अर्जुन उससे युद्ध करने आगे जाने वाला था परन्तु संशप्तकों ने उसे रोक लिया। इस पर क्रोधित होकर अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और अधिकांश संशप्तकों को यमलोक पहुँचा दिया और भगदत्त की ओर गया।
भगदत्त ने एक के बाद एक श्रीकृष्ण और अर्जुन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। जिसके उत्तर में अर्जुन ने भी कई बाण चलाए और सबसे पहले भगदत्त के हाथी को कवचविहीन कर दिया। इसके बाद भगदत्त ने कुपित होकर अर्जुन पर वैष्णवास्त्र छोड़ दिया। जिससे स्वयं श्रीकृष्ण को आगे आकर वह अस्त्र अपनी छाती में लेना पड़ा। इसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भगदत्त की पलकों पर बँधी पट्टी को काट दिया जिससे तुरन्त ही भगदत्त की आँखें बन्द हो गईं और फिर एक और तीर से अर्जुन ने भगदत्त के प्राण हर लिए।
इसके बाद अर्जुन ने सुबल पुत्र यानी शकुनि के भाइयों वृषक और अचल का भी वध कर दिया। इस पर क्रोधित होकर शकुनि ने अर्जुन और श्रीकृष्ण पर अपनी माया का प्रयोग किया। अर्जुन ने आदित्यास्त्र का प्रयोग करके इस माया को समाप्त कर दिया।
युद्ध और भी भयंकर होता जा रहा था। अश्वत्थामा ने राजा नील का वध कर दिया। इसके बाद अर्जुन और कर्ण तथा कर्ण और सात्यकि का भी भीषण युद्ध हुआ और सूर्य अस्ताचल को चला गया।
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