रणभूमि शृंखला के नए अंक में मैं आपका सूत्रधार अनुज आपका स्वागत करता हूँ। दसवें दिन के युद्ध में भीष्म को पराजय मिली जिसके बाद सभी योद्धा एक-एक करके भीष्म के पास गए। अगले दिन कर्ण और भीष्म का रहस्य संवाद हुआ। कर्ण के चले जाने से कौरव सेना में शोक छा गया था। परन्तु भीष्म ने कर्ण को समझाया। कर्ण ने दुर्योधन के समक्ष द्रोणाचार्य का नाम सेनापति के रूप में रखा।
11वें दिन का युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। दुर्योधन की प्रार्थना पर द्रोणाचार्य सेनापति पद के लिए मान गए। द्रोण ने 11वें दिन के लिए शकटव्यूह का निर्माण किया। द्रोण ऐसे पराक्रम के साथ युद्ध में उतरे कि धरती काँप उठी। धूल, मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। कौरव तथा पाण्डव योद्धा विजय की अभिलाषा लेकर एक-दूसरे से युद्ध करने लगे।
द्रोणाचार्य को रोकने के लिए पाण्डव सेना से धृष्टद्युम्न आगे बढ़ा। उसने द्रोण को कई बाणों से घायल कर दिया। परन्तु द्रोण ने धृष्टद्युम्न के बाणों का उत्तर दिया और पाण्डव सेना हाहाकार करके भागने लगी। इस पर युधिष्ठिर ने अपने योद्धाओं को द्रोण से युद्ध करने के लिए भेजा।
ऐसा भीषण संग्राम छिड़ गया जो भूले से भी भुलाया नहीं जा सकता था। द्रोण ने पाण्डव सेना की एक अक्षोहिणी सेना तबाह कर दी। गिद्ध और बाज आकाश में उड़ रहे थे। इतने अधिक मृत शरीरों को देखकर उनकी भोजन लालसा बढ़ चुकी थी। पाण्डव सेना पूरी तरह से उथल-पुथल हो चुकी थी।
दुर्योधन ने द्रोण से वर माँगा और द्रोण ने उसे आश्वासन दिया कि अर्जुन की अनुपस्थिति में वे युधिष्ठिर को बन्दी बना लेंगे।
दूसरी ओर अभिमन्यु ने राजा पौरव पर हमला किया, जिसे देखकर जयद्रथ अभिमन्यु से युद्ध करने पहुँचा। अभिमन्यु काल की भाँति कौरव सेना का संहार कर रहा था।
जब कौरव सेना द्रोण के पराक्रम से प्रसन्न होकर हर्ष मनाने लगी तो अर्जुन ने अपने गाण्डीव से कौरव सेना का ऐसा भीषण नरसंहार किया कि हाहाकार मच गया।
11वें दिन का आधा युद्ध कौरव पक्ष में और शेष आधा युद्ध पाण्डव पक्ष में प्रबल रहा।
सूर्य अस्ताचल को चला गया और दोनों सेनाएँ अपने अपने शिविर में लौट गईं।
अगले बुधवार आपसे पुनः भेंट होगी, धन्यवाद