रणभूमि अध्याय 10 - शरशय्या

रणभूमि अध्याय 10 - शरशय्या

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नवें दिन का युद्ध समाप्त होने पर श्रीकृष्ण सहित सभी पाण्डव भीष्म से उनके वध उपाय kaa जानने के लिए पहुँचे तब उन्होंने बताया कि शस्त्र नीचे डाल चुके, गिर चुके, कवच ध्वज से शून्य हो चुके, भयभीत होकर भागते हुए, 'मैं तुम्हारा हूँ' कहने वाले, स्त्री या स्त्री जैसा नाम रखने वाले, विकल, पिता के इकलौते पुत्र, नीच जाति के इत्यादि मनुष्यों पर वो हमला नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि शिखण्डी पहले स्त्री था और बाद में पुरुष भाव को प्राप्त हुआ है तो यदि अर्जुन शिखण्डी को आगे रखकर उन पर तीर चलाएगा तो वे शिखण्डी पर आक्रमण नहीं करेंगे। 

ऐसा उपाय जानकर पाण्डव अपने शिविर में आ गए। अगले दिन सूर्योदय होते ही पाण्डव सेना ने शिखण्डी को आगे किया और भीमसेन तथा अर्जुन उसके पहियों के रक्षक बनकर युद्ध में उतरे। सभी पाण्डव भीष्म पर चढ़ाई करने लगे। जब भीष्म ने पाण्डव सेना का संहार शुरू किया तो शिखण्डी ने उन पर तीन बाण चलाए परन्तु भीष्म ने उन बाणों का उत्तर नहीं दिया। परन्तु पाण्डव सेना भीष्म के संहार को भी रोकने में असफल रही। अर्जुन ने शिखण्डी का उत्साह बढ़ाया और पुनः भीष्म से युद्ध करने को प्रेरित किया। इसके बाद पुनः पाण्डव सेना भीष्म की ओर कूच करने लगी। पाण्डव योद्धाओं को रोकने के लिए कौरव योद्धा आगे आए। यहाँ तक कि दुःशासन ने अर्जुन को भी आगे बढ़ने से रोक दिया। दुःशासन ने वीरता के साथ अर्जुन से युद्ध किया परन्तु परिणाम उसके पक्ष में नहीं आया तो वो भीष्म की शरण में चला गया। जितने भी पाण्डव योद्धा भीष्म के वध की इच्छा से आगे आ रहे थे उन्हें कौरव योद्धा घायल करते जा रहे थे और उनका मार्ग रोककर रखे थे।

युद्ध का दसवें दिन इतना भीषण संग्राम छिड़ गया था कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। आज पाण्डव सेना हर मूल्य चुकाकर भीष्म का वध करना चाहती थी। परन्तु कौरव योद्धाओं के पराक्रम के आगे उनकी एक नहीं चल रही थी।

इस समय भगदत्त, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अवन्ति राजकुमार विन्द व अनुविन्द, जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण और दुर्मर्षण ये दस कौरव योद्धा भीमसेन से युद्ध कर रहे थे। इन सभी कौरव योद्धाओं ने अनेकों बाण चलाकर भीमसेन को घायल किया परन्तु भीमसेन ने भी उन्हें उत्तर देते हुए कई-कई बाणों से घायल कर दिया। भीमसेन ने जयद्रथ के सारथी तथा घोड़ों को यमलोक भेज दिया तो जयद्रथ धरती पर खड़े होकर ही भीमसेन पर प्रहार करने लगा। परन्तु अपना धनुष भी टूट जाने के बाद जयद्रथ तुरन्त जाकर चित्रसेन के रथ पर बैठ गया। भीमसेन आँखों में ज्वाला लिए कौरव योद्धाओं पर बरस रहा था। कई-कई बार घायल होने के बाद भी भीमसेन के हौसले प्रबल थे। भीमसेन की युद्ध कला देखते ही बनती थी। इतने में अर्जुन और शिखण्डी भी वहाँ आ पहुँचे। तो दुर्योधन ने सुशर्मा को अर्जुन से भिड़ने के लिए भेजा।

अर्जुन के उस युद्धभूमि में पहुँचते ही कौरव योद्धाओं के विजय की आशा छूट गई। अर्जुन ने अनेकों बाणों से दसों कौरव योद्धाओं को घायल किया। परन्तु कौरव योद्धा भी शान्त नहीं बैठने वाले थे। उन्होंने भी अनेकों बाणों से भीमसेन और अर्जुन दोनों को घायल करना प्रारम्भ कर दिया। दुर्योधन ने मगधनरेश और द्रोणाचार्य को भी  इसी संग्राम में शामिल होने के लिए भेज दिया। परन्तु अर्जुन तथा भीमसेन ने इन सभी को बुरी तरह घायल कर दिया तो भीष्म, दुर्योधन और बृहदबल, अर्जुन तथा भीमसेन से लोहा लेने आगे बढ़े।

युद्ध अपने विकराल रूप में आ चुका था। आज दोनों पक्षों के महारथी अपना पूरा बल लगाकर युद्ध कर रहे थे। भीष्म दावानल के समान पाण्डव सेना को जलाकर राख कर देने के उद्देश्य से युद्ध कर रहे थे। शिखण्डी के अतिरिक्त कोई पाण्डव योद्धा भीष्म के सम्मुख जाने की चेष्टा तक नहीं कर रहा था।

शिखण्डी भीष्म पर बाण मारकर उन्हें घायल तो कर रहा था लेकिन भीष्म को उसके बाणों से कोई वेदना नहीं हो रही थी। दूसरी ओर अर्जुन अनेकों कौरव सैनिकों को रथहीन करके आगे बढ़ रहा था। अर्जुन जैसे ही भीष्म के निकट पहुँचा तो उसने शिखण्डी को आगे करके भीष्म पर धावा बोला। अर्जुन ने भीष्म का धनुष तोड़ दिया। यह अवसर पाकर शिखण्डी ने कई बाणों से भीष्म और उनके सारथी को घायल किया तथा उनका ध्वज काट दिया। भीष्म ने दूसरा धनुष उठाया तो अर्जुन ने उसे भी काट दिया। शिखण्डी लगातार भीष्म पर बाणों की वर्षा कर रहा था लेकिन भीष्म को उन बाणों से कुछ भी पीड़ा नहीं हो रही थी। तो अर्जुन ने भीष्म पर आक्रमण आरम्भ किया। अपने धनुष बार-बार काटे जाने के कारण और बुरी तरह से घायल हो जाने के बाद भीष्म ने हाथ में ढाल और तलवार उठा ली। इस बार भीष्म की रक्षा के लिए अनेक योद्धा आगे आए परन्तु पाण्डव योद्धाओं ने उन्हें खदेड़ दिया। अर्जुन एक के बाद एक भीष्म पर बाण चलाता जा रहा था। भीष्म के शरीर में दो अंगुल जगह भी ऐसी नहीं बची थी जिसमें बाण ना लगे हों। भीष्म ने कौरव सेना की ओर देखा और अपने रथ से गिर पड़े। दिन अब थोड़ा-सा ही शेष बचा था। भीष्म को रथ से गिरता देखकर कौरव सेना के हृदय भी गिर गए। भीष्म के शरीर में इतने बाण लगे थे कि उनका शरीर धरती पर स्पर्श नहीं हुआ। सूर्य दक्षिणायन में था अतः भीष्म ने मृत्यु स्वीकार नहीं की। भीष्म शरशय्या पर पहुँच गए थे। कौरव सेना में शोक छा गया था। युद्ध विराम हो चुका था। सभी योद्धा बारी-बारी भीष्म के पास आने लगे थे। अर्जुन से भीष्म ने अपनी शय्या के अनुरूप तकिया माँगा तो अर्जुन ने तीन बाणों से उनका सिर स्थिर करके एक तकिया बना दिया।

दसवें दिन का युद्ध भीष्म की पराजय के साथ समाप्त हो चुका था।

गजेन्द्र प्रियांशु की क़लम से -

शरशैय्या पर लगे पूछने भीष्म पितामह
कहो युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ कैसा लगता है।
कहो युधिष्ठिर।
 
गली गली में लाखों प्रश्न खड़े हैं लेकिन,
प्रश्न सभी यदि युद्धों से ही हल हो जाते,
तो राधा के नयन प्रलय के आंसू लाते,
और सुदामा के तंदुल असफल हो जाते,
कहो युधिष्ठिर यह कैसा है धर्म जगत का ,
जीवन ही हो रहा नष्ट कैसा लगता है।
कहो युधिष्ठिर
 
क्या अब कर्ण नहीं बहते हैं  गंगाजल में,
क्या निश्चिन्त हो गयी जग में कुन्ती माएँ,
सर्वनाश हो गए कहो कुल दुशासनों के,
या लुटती रहती हैं अब भी द्रुपद सुताएँ।
कहो युधिष्ठिर भोर हो गई क्या भारत में,
या सूरज हो रहा अस्त कैसा लगता है?
कहो युधिष्ठिर?
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