रणभूमि अध्याय 09 - भीष्म की क्रोधाग्नि

रणभूमि अध्याय 09 - भीष्म की क्रोधाग्नि

श्रोताओं मैं आपका सूत्रधार अनुज आपके लिए नवें दिन का महाभारत युद्ध लेकर पुनः उपस्थित हूँ। हम युद्ध का वर्णन शुरू करें इसके पहले ही playranbhoomi.com visit करें और हमारा बोर्ड गेम खरीदें। इसके अतिरिक्त पौराणिक चर्चा सुनने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल MySutradhar को सब्सक्राइब करें। 

नवें दिन के युद्ध के पूर्व दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुःशासन ने आपसी सलाह करके भीष्म से पाण्डवों का वध करने अथवा कर्ण को युद्ध के लिए आज्ञा देनी की बात रखी। प्रातःकाल होते ही भीष्म ने कौरव सेना को सर्वतोभद्र व्यूह में संगठित किया। इसके उत्तर में पाण्डवों ने समुद्र की तरह विशाल महाव्यूह बनाया।

भीष्म के नेतृत्व में कौरव सेना, पाण्डव सेना पर टूट पड़ी। इतना घमासान युद्ध शुरू हुआ कि चारों ओर धूल की वर्षा हो रही थी। दूसरी ओर अभिमन्यु भी कौरव सेना पर बरस पड़ा था। बादलों की जलधारा के समान अभिमन्यु बाणों की वर्षा कर रहा था। जैसे वराहरूपी भगवान विष्णु ने महासागर में प्रवेश किया था, उसी तरह अभिमन्यु कौरव सैन्यसमुद्र में प्रवेश कर रहा था। जैसे हवा, रुई के ढेर को आकाश में उड़ा देती है उसी तरह अभिमन्यु ने कौरव सेना को चारों दिशाओं में भागने पर विवश कर दिया। अभिमन्यु को देखकर ऐसा लग रहा था मानो दूसरा अर्जुन युद्ध करने आ गया हो। अपनी सेना की इस दुर्दशा को देखकर दुर्योधन ने राक्षस अलम्बुष से प्रतिघात करने को कहा।

अलम्बुष तीव्र गर्जना करते हुए अभिमन्यु की ओर बढ़ा और उसके चारों ओर खड़ी सेना को भगाने लगा। यह देखकर द्रौपदी के पाँचों पुत्रों ने अलम्बुष से लोहा लेने की ठानी। उन्होंने अलम्बुष को बुरी तरह से घायल कर दिया और प्रतिविन्ध्य ने अलम्बुष को बेध दिया।

कुछ देर की मूर्च्छा के बाद अलम्बुष क्रोध से जल उठा और उसने द्रौपदी के पाँचों पुत्रों के घोड़ों और सारथियों को मार दिया। अपने योद्धाओं के रथविहीन हो जाने की स्थिति में अभिमन्यु ने बीच में आकर अलम्बुष का मार्ग रोका। जहाँ एक ओर अलम्बुष मायावी था तो वहीं अभिमन्यु को दिव्यास्त्रों का ज्ञान था। इस कारण दोनों ही योद्धा एक-दूसरे को बुरी तरह घायल करने लगे। अचानक ही अलम्बुष ने अन्धकारमयी तामसी महामाया प्रकट की। जिससे चारों ओर अन्धकार छा गया। इसके उत्तर में अभिमन्यु ने भास्करास्त्र प्रकट किया तो पुनः जगत प्रकाशमय हो गया। अपनी माया नष्ट होते ही भयवश अलम्बुष रथ छोड़कर वहाँ से भाग गया। जिसके बाद अभिमन्यु ने पुनः कौरव सेना का मर्दन शुरू कर दिया। जिसे भीष्म ने आकर रोका।

 

अपने पुत्र को भीष्म से युद्ध करता देखकर अर्जुन तुरन्त वहाँ पहुँचा और स्वयं भीष्म से युद्ध आरम्भ कर दिया। यह देखकर धृतराष्ट्र के पुत्र, अश्वत्थामा और कृपाचार्य जैसे अन्य योद्धा तुरन्त अर्जुन को घेरकर खड़े हो गए। सात्यकि ने भी अर्जुन की सहायता के लिए आगे आकर कृपाचार्य की ओर एक प्राणघाती बाण छोड़ा जिसे अश्वत्थामा ने अपने तीर से काट दिया। यह देखकर सात्यकि ने कृपाचार्य को छोड़कर अश्वत्थामा पर धावा बोला।

सात्यकि ने इतनी बुरी तरह से अश्वत्थामा को घायल किया कि वो बहुत देर तक अपने रथ में बैठा रहा। यह देखकर अपने पुत्र की रक्षा के लिए द्रोणाचार्य आगे आए। परन्तु सात्यकि पर लगातार योद्धाओं के आक्रमण अर्जुन से सहन नहीं हुए और वो स्वयं द्रोणाचार्य से लोहा लेने आगे बढ़ा।

अर्जुन ने द्रोणाचार्य को बुरी तरह से बींध दिया जिस कारण दुर्योधन ने सुशर्मा को द्रोणाचार्य की रक्षा के लिए भेजा। अर्जुन ने इस समय वायव्यास्त्र का प्रयोग किया जिसके उत्तर में द्रोणाचार्य ने भयानक पर्वतास्त्र का सन्धान किया। इसके बाद अर्जुन को कई कौरव महारथियों ने घेर लिया और उनके बीच भीषण संग्राम छिड़ गया।

भीमसेन इस समय अपनी गदा से कौरवों की गजसेना पर मृत्यु बनकर बरस रहा था। उस दौरान धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, विराट और द्रुपद, भीष्म से भिड़ने आगे बढ़े। यनं सभी योद्धाओं ने भीष्म को बुरी तरह से घायल कर दिया।

युद्ध बहुत ही भीषण होता जा रहा था। युद्ध के दौरान अर्जुन ने त्रिगतों को पराजित किया तथा अभिमन्यु ने चित्रसेन को, द्रोण ने द्रुपद को, भीमसेन ने बाह्लीक को पराजित किया। 

अब तक भीष्म के क्रोध की ज्वाला में पाण्डव सेना धू-धू करके जल रही थी। उन्हें रोकने की कोशिश कई महारथियों ने की परन्तु आज भीष्म काल बनकर पाण्डव सेना पर टूट पड़े थे। चेदि, काशी, करूष देश के 14 हज़ार महारथियों को भीष्म ने यमलोक का मार्ग दिखा दिया था।

इस समय अर्जुन के अतिरिक्त भीष्म का सामना करने का सामर्थ्य और किसी में नहीं था इसलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से भीष्म पर आक्रमण करने को कहा। अर्जुन ने भीष्म पर हमला तो किया परन्तु पूरे मन से युद्ध ना करने के कारण श्रीकृष्ण क्रोध से जल उठे और हाथ में चाबुक लिए हुए ही रथ छोड़कर भीष्म की ओर दौड़ पड़े। भीष्म ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींच ली परन्तु वे श्रीकृष्ण के प्रहार की प्रतीक्षा करने लगे। इसी समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण को पैरों से पकड़कर उन्हें उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाई। इसी के साथ श्रीकृष्ण वापस रथ पर आ गए और अर्जुन तथा भीष्म के मध्य पुनः युद्ध आरम्भ हो गया।

देखते ही देखते सूर्यदेव अस्ताचल की ओर चले गए जिससे युद्ध विराम हो गया।

 

अगले बुधवार रणभूमि के 10वें दिन के युद्ध के साथ आपसे पुनः भेंट होगी धन्यवाद।

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