रणभूमि अध्याय 08 - वीरों की वीरगति

रणभूमि अध्याय 08 - वीरों की वीरगति

रणभूमि के युद्ध में अब तक सात दिवसों का युद्ध मैं आपका सूत्रधार अनुज आपको सुना चुका हूँ। अन्य पौराणिक कथाओं के लिए सूत्रधार एप डाऊनलोड कीजिए, पुराणों से जुड़ी चर्चाओं के लिए सूत्रधार के टॉक शो कही सुनी को हर रविवार हमारे यूट्यूब चैनल पर लाइव सुनिए और बच्चों को महाभारत युद्ध से परिचित कराने के लिए हमारा बोर्ड गेम रणभूमि : कुरुक्षेत्र खरीदिए

चलिए आठवें दिन के युद्ध का आरम्भ करते हैं।

आठवें दिन के लिए कौरव सेना ने समुद्र के समान दिखने वाला महाव्यूह बनाया जिसके उत्तर में पाण्डव सेना ने सिंघाड़े की भाँति दिखने वाला शृंगाटक व्यूह बनाया। चारों ओर रणभेरियाँ बजने लगीं।  युद्ध आरम्भ हुआ। हाथियों के दाँत आपस में ऐसे टकराए कि चिंगारियाँ उछलने लगीं। भीष्म ऐसे प्रताप से युद्धभूमि में उतरे कि उनका तेज पाण्डव सैनिक देख ही नहीं पाए और यमलोक पहुँच गए। भीष्म के बाणों से कितने ही पाण्डव सैनिकों के मस्तक कटकर धरती पर गिरने लगे। इस समय भीमसेन के अलावा और कोई भी पाण्डव योद्धा भीष्म से लोहा लेने में सफल ना हो सका। भीष्म और भीम के भिड़ते ही पूरी सेना में कोलाहल मच गया। भीमसेन ने भीष्म के सारथी को मार दिया जिससे उनके घोड़े रणभूमि में यहाँ-वहाँ दौड़ लगाने लगे। भीमसेन कौरव सेना का संहार करने आगे बढ़ा तभी धृतराष्ट्र पुत्र सुनाभ ने भीमसेन पर धावा बोल दिया। भीमसेन ने कुपित होकर क्षुरप्र से सुनाभ का शीश काट दिया। यह अपराध धृतराष्ट्र के सात रणवीर पुत्रों अदित्यकेतु, बह्वाशी, कुण्डधार, महोदर, अपराजित, पण्डितक और विशालाक्ष से सहन नहीं हुआ। उन सभी ने भीमसेन पर आक्रमण कर दिया। सातों भाइयों ने कई-कई बाणों के प्रहार से भीमसेन को घायल कर दिया। भीमसेन इन प्रहारों को सहन ना कर सका और उसने अपराजित का मस्तक काट दिया। अगले ही पल भीमसेन ने कुण्डधार को यमलोक भेज दिया। फिर भीमसेन ने एक बाण का सन्धान किया जो पण्डितक की छाती चीरता हुआ धरती में समा गया। इसके बाद तो मानो भीमसेन का नरसंहार रोकना असम्भव हो गया। कुछ ही पलों में शेष बचे अदित्यकेतु, बह्वाशी, महोदर, विशालाक्ष के भी मस्तक कटकर धरती पर गिर गए। अपने भाइयों की मृत्यु पर दुर्योधन को बहुत कष्ट हुआ और उसने सेना को भीमसेन का वध करने का आदेश दिया।

दूसरी ओर युधिष्ठिर के आदेश पर धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, सात्यकि, विराट, द्रुपद, केकय, धृष्टकेतु, कुन्तिभोज इन सभी ने भीष्म की ओर कूच की तथा अर्जुन, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और चेकितान, अभिमन्यु, घटोत्कच और भीमसेन दुर्योधन की भेजी सेना पर टूट पड़े। 

इस भीषण संग्राम में नकुल और सहदेव ने कौरव घुड़सवारों को अपना निशाना बनाया। जब यह संग्राम चल रहा था उसी समय शकुनि, कृतवर्मा ने पाण्डवों पर हमला कर दिया। इसके उत्तर में अर्जुन और उलूपी का पुत्र इरावान कौरव सेना पर चढ़ आया। यह देखकर शकुनि के छः भाइयों गज, गवाक्ष, वृषभ, चर्मवान, आर्जव और शुक ने इरावान से लोहा लेने की ठानी। उन सभी ने इरावान पर बाणों की वर्षा कर दी जिससे इरावान रक्त से नहा उठा। इरावान ने अपने शरीर से बाण निकालकर सुबल के छहों पुत्रों पर हमला करके उन्हें मूर्छित किया और फिर तलवार और ढाल लेकर पैदल ही उनसे युद्ध करने दौड़ पड़ा। सुबल पुत्रों की मूर्छा जैसे ही दूर हुई उन्होंने घेराबन्दी करके इरावान को घेर लिया। वृषभ को छोड़कर शेष सभी सुबल पुत्र वहीं मरकर धरती पर गिर गए।

यह देखकर दुर्योधन भयभीत हो उठा और उसने ऋष्यशृंग पुत्र अलम्बुष राक्षस को इरावान से युद्ध करने भेजा।

अलम्बुष ने तुरन्त ही माया का प्रयोग किया और दो हज़ार घोड़े उत्पन्न किए। इरावान इस माया से बच निकला और फिर अलम्बुष से जा भिड़ा। अलम्बुष ने एक भयंकर माया से इरावान को घेरना चाहा तो इरावान की रक्षा के लिए मातृकुल के नागों ने उस पर एक घेरा बना लिया। अलम्बुष ने भी गरुड़ का रूप धारण किया और सभी नागों का भक्षण कर लिया। अगले ही पल अलम्बुष ने तलवार से इरावान का मस्तक काट दिया।

अर्जुन इस समय भीष्म से युद्ध करने में व्यस्त था इसलिए उसे अपने पुत्र की सूचना नहीं मिली। यही भीमसेन, सात्यकि और धृष्टद्युम्न के साथ भी हुआ। परन्तु घटोत्कच को इरावान की मृत्यु की सूचना मिलते ही वह सिंहनाद करने लगा। घटोत्कच का सामना करने के लिए स्वयं दुर्योधन आगे आया। घटोत्कच की सहायता के लिए वेगवान, महारौद्र, विद्युज्जिह्व और प्रमाथी जैसे राक्षस भी आगे आए। हालाँकि दुर्योधन ने इन चार राक्षसों को क्षण भर में ही यमलोक की यात्रा करवा दी। जिससे घटोत्कच क्रोध से जल उठा। दुर्योधन ने घटोत्कच पर भी कई बाण छोड़े जिससे उसके शरीर से रक्त बहने लगा। परन्तु घटोत्कच ने दुर्योधन का विनाश करने का निश्चय कर लिया था अतः वह आगे बढ़ता गया। घटोत्कच ने एक शक्ति का प्रहार दुर्योधन पर किया परन्तु वंगदेश के राजा ने अपनी हाथी का बलिदान देकर उस शक्ति को रोक दिया। हाथी जिस वेग से धरती पर गिरा उससे कौरव सेना में भगदड़ मच गई और घटोत्कच दहाड़ने लगा। यह सुनकर भीष्म ने द्रोणाचार्य को तुरन्त दुर्योधन के पास जाने को कहा।  द्रोणाचार्य, सोमदत्त, बाह्लीक, जयद्रथ, कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अवन्ति राजकुमार, बृहदबल, अश्वत्थामा, विकर्ण, चित्रसेन, विविंशति और उनके अनुयायी सभी दुर्योधन की सहायता के लिए आगे बढ़े। लेकिन घटोत्कच क्रोध की अग्नि में जल रहा था इसलिए उसने इन सभी महारथियों को या तो घायल कर दिया या मूर्छित कर दिया या उनके सारथियों को मार दिया। घटोत्कच को अकेले ही इतने योद्धाओं से लड़ता देखकर युधिष्ठिर ने भीमसेन को तुरन्त ही वहाँ जाने को कहा। भीमसेन के पीछे सत्यधृति, सौचित्ति, श्रेणिमान, वसुदान, काशीराज पुत्र अभिभू, अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा, अनुपनरेश नील सब के सब घटोत्कच की रक्षा के लिए आगे बढ़े। 

इतना भीषण युद्ध छिड़ा कि कौरव सेना और उसके महारथी छिन्न-भिन्न हो गए। इस कारण कौरव सैनिक शिविर की ओर पलायन करने लगे। यह देखकर भीष्म ने भगदत्त को घटोत्कच का सामना करने के लिए भेजा। दोनों में भीषण युद्ध छिड़ गया। इस समय तक अर्जुन भी वहाँ आ चुका था। जैसे ही उसे अपने पुत्र इरावान की मृत्यु का पता चला तो मानो अर्जुन में स्वयं रुद्र का वास हो गया और वो कौरव सेना का संहार करने लगा।

देखते ही देखते दोनों पक्षों के कितने ही योद्धा मारे गए और सन्ध्या होते ही युद्ध विराम हो गया।

इस युद्ध के आठवें दिन धृतराष्ट्र के आठ पुत्र, शकुनि के पाँच भाई और अर्जुन पुत्र इरावान वीरगति को प्राप्त हुए। 

साथियों अगले बुधवार आपसे पुनः भेंट होगी। धन्यवाद

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