प्रिय श्रोताओं मैं आपका सूत्रधार अनुज महाभारत संग्राम के दूसरे दिन का युद्ध लेकर आपके समक्ष पुनः उपस्थित हूँ। पहले दिन के युद्ध में हमने पाण्डवों के वज्र व्यूह पर भारी पड़े कौरवों के सर्वतोमुखी व्यूह और उत्तर तथा श्वेत के वीरगति प्राप्त होने का वर्णन सुना। चलिए फिर दूसरे दिन के युद्ध के विषय में जानने के लिए तैयार हो जाइए।
राहुल शर्मा ने महाभारत युद्ध का जो वर्णन इन चार पंक्तियों में किया, ठीक वैसा ही दृश्य महाभारत युद्ध के दूसरे दिन बनने को तैयार था। युद्ध के पहले दिन अपने दो शूरवीर योद्धाओं की वीरगति का दुःख युधिष्ठिर को सता रहा था। इसलिए इस बार उन्होंने स्वयं व्यूह रचना का कार्यभार सम्भाला। युद्ध के पूर्व धृष्टद्युम्न को युधिष्ठिर के क्रोंचारुण या क्रोंच व्यूह रचना का नेतृत्व करने का कार्यभार सौंपा। इस व्यूह का प्रयोग देवासुर संग्राम के दौरान बृहस्पति के निर्देशानुसार इन्द्र ने किया था। प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व ही धृष्टद्युम्न ने समस्त सेनाओं का व्यूह निर्माण किया, जिसमें सबसे आगे अर्जुन खड़े थे। व्यूह में क्रोंच पक्षी के सिर के स्थान पर द्रुपद खड़े हुए। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु नेत्रों के स्थान पर, दाशार्णक, प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान पर, पटच्चर, पौण्ड्र, पौरव और राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में, भीमसेन और धृष्टद्युम्न पक्षी के पंखों के स्थान पर, अभिमन्यु और सात्यकि के साथ जनपद राजा दाहिने पंख का आश्रय लेकर खड़े हुए एवं नकुल और सहदेव के साथ शेष जनपद राजा बाएँ पंख का आश्रय लेकर खड़े हुए।
इस तरह पंखभाग में 10 हज़ार, सिर के भाग में एक लाख, पृष्ठभाग में 10 करोड़ 20 हज़ार, गर्दन में एक लाख 70 हज़ार रथ मौजूद थे।
पूरी सेना दूसरे दिन के युद्ध के लिए तैयार थी। पाण्डव पक्ष अपने दो शूरवीर योद्धाओं के वध के प्रतिशोध में बौखलाहट से नहीं भरा था बल्कि पूरी चेतनता के साथ युद्ध क्षेत्र में तैयार खड़ा था।
इसके प्रतिउत्तर के लिए दुर्योधन ने पुनः कुछ महारथियों को भीष्म की रक्षा हेतु नियुक्त किया और भीष्म ने पुनः सर्वतोमुखी या सर्वतोभद्र व्यूह का निर्माण किया। युद्ध के पहले दिन कौरव पक्ष का पलड़ा भारी था इसलिए भीष्म ने रणनीति में बदलाव किए बिना ही युद्ध क्षेत्र में उतरना बेहतर समझा।
भीष्म पाण्डवों को युद्ध में हराने के लिए पूरी तरह से तैयार थे। उन्होंने अर्जुन को नाकों चने चबाने की शपथ ली थी।
बिन्दु शर्मा ने अपने कवित्त में इसका सुन्दर चित्रण किया है।
दोनों ओर के योद्धाओं ने अपने-अपने शंखनाद करके युद्ध आरम्भ की घोषणा की। दोनों ओर की सेनाएँ अपने-अपने व्यूह का पालन करके आगे बढ़ने लगीं।
अस्त्रों में अस्त्र, शस्त्रों में शस्त्र, पशुओं में पशु, इन्सानों में इन्सान ऐसे टकराकर मिल रहे थे जैसे दो नदियों का संगम हो रहा हो और जब भी दो वेगवान धाराएँ आपस में टकराती हैं तो दृश्य धूमिल हो उठता है।
महाभारत युद्ध के दूसरे दिन भीष्म के नेतृत्व में कौरव सेना ने पाण्डवों पर ज़ोरदार आक्रमण किया, जिससे पाण्डव सेना तितर-बितर हो गई।
भीष्म आज पुनः पाण्डव सेना पर मृत्यु बनकर बरस पड़े थे लेकिन आज इस विध्वंस को रोकने का बेड़ा स्वयं अर्जुन ने उठाया था। पितामह भीष्म को देखकर अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण उनके रथ को भीष्म के सामने ले गए।
अर्जुन को भीष्म की ओर आता देखकर भीष्म तथा उनके चारों ओर उपस्थित योद्धा द्रोण, कृपाचार्य, दुर्योधन, शल्य, जयद्रथ, शकुनि तथा विकर्ण ने एक साथ अर्जुन पर धावा बोल दिया। उन्होंने क्रमशः 77, 25, 50, 64, 9, 5 और 10 बाणों से अर्जुन पर आक्रमण किया। अर्जुन अपने ऊपर हुए इस आक्रमण से लेशमात्र भी नहीं डोला। उसने प्रतिउत्तर में अपने सभी विरोधी योद्धाओं को बींध डाला। अब तक अर्जुन की रक्षा हेतु भी कई योद्धा जैसे सात्यकि, विराट, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँच पुत्र वहाँ पहुँच चुके थे।
अब शेष योद्धा आपस में भिड़ गए और भीष्म तथा अर्जुन का आमना-सामना होने को था। धरती को आकाश से मिला देने वाले दो चक्रवात आपस में टकराने वाले थे। इन दोनों ही योद्धाओं के कौशल पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता था। धरती के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में अर्जुन और भीष्म का नाम अग्रिम पंक्ति में आता था। वैसे भी अर्जुन का सामना करने का सामर्थ्य भीष्म, द्रोण और कर्ण के अलावा किसी के पास नहीं था।
भीष्म साक्षात् यमराज की तरह पाण्डव सेना को काट रहे थे। भीष्म प्रथम दिन की ही भाँति पाण्डव सेना का काल बनकर रणभूमि में उतरे थे। लेकिन उनका सामना करने अर्जुन अब उपस्थित हो चुका था। अर्जुन और भीष्म का भयंकर युद्ध छिड़ गया। सव्यसाची अर्जुन कई सहस्त्र बाणों से भीष्म पर प्रहार करने लगा लेकिन भीष्म भी पीछे हटने वालों में से नहीं थे। कई बाणों से बिंध जाने के बाद भी भीष्म प्रतिउत्तर हेतु तैयार थे। दोनों वीर योद्धाओं के बाणों की वर्षा से सूर्य का प्रकाश उस क्षेत्र में बाधित हो गया। दोनों के बाण आपस में टकराकर धरती पर मोटी परत बनाते हुए इकट्ठा होने लगे। भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया। अपने सारथी श्रीकृष्ण को घायल देखकर अर्जुन कुपित हो उठा और उसने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया। दोनों पक्ष एक-दूसरे के हमलों की कमी को क्षण भर में ही भाँपकर उन्हें ध्वस्त करते जा रहे थे। दोनों शूरवीर योद्धाओं ने युद्धकला के कई-कई पैंतरों का प्रदर्शन किया। दोनों ही योद्धाओं के युद्ध कौशल में इतनी समानता थी कि रणभूमि में उपस्थित शेष योद्धा केवल ध्वजाओं से ही उनमें अन्तर कर पा रहे थे।
जैसा दृश्य अर्जुन और भीष्म के मध्य बना था वैसा ही एक और दृश्य भी युद्धक्षेत्र में बन चुका था। धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य वेणियों की तरह युद्ध में गुथ गए थे। दोनों ने एक-दूसरे पर कई प्राणघाती बाणों से निशाना साधा। द्रोणाचार्य के भल्ल नामक बाण धृष्टद्युम्न के कवच को छेदकर उसका रक्तपान करने में सक्षम रहे। इसके पश्चात द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न के सारथी को भी मार दिया और उसके घोड़ों को भी ढेर कर दिया। परन्तु आज धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य का वध करने का मन बनाकर युद्धक्षेत्र में उतरा था इसलिए अपने धनुष कट जाने के बाद वो गदा लेकर द्रोणाचार्य की ओर बढ़ चला। परन्तु द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न की गदा को रथ से उतरते ही तोड़ दिया। इसके बाद धृष्टद्युम्न ढाल और खड्ग लेकर एक शिकार की लालसा रखने वाले सिंह की भाँति अपने शिकार हाथी यानी कि द्रोणाचार्य पर टूट पड़ा। परन्तु द्रोणाचार्य ने अपने बाणों से धृष्टद्युम्न को मार्ग में ही रोक लिया। यह देखकर भीम, धृष्टद्युम्न की सहायता के लिए आ गए। भीम ने तुरन्त धृष्टद्युम्न को अपने रथ पर बिठा लिया और द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। दुर्योधन ने भी तुरन्त भानुमान को द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु नियुक्त कर दिया।
अब पूरी कलिंग सेना भीम के सम्मुख आ गई थी। द्रोणाचार्य द्रुपद और विराट से लड़ने चले गए। युद्ध के दूसरे दिन भी महाबली भीम अपने युद्ध कौशल के प्रदर्शन के लिए तैयार थे। कलिंगराज श्रुतायु के अलावा निषादराज केतुमान भी भीम से युद्ध करने हेतु तत्पर था। श्रुतायु भीम से लोहा लेने आगे बढ़ चला। भीमसेन इस भाँति युद्ध कर रहा था जैसे दैत्यसेना के विरुद्ध देवराज इन्द्र ने किया था। इसका परिणाम ये हुआ कि भीम ने सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए। जिस तरह बाज अपने शिकार पर दृष्टि गढ़ाकर उसके प्राण हर लेता है वैसे ही भीमसेन विपक्ष के योद्धाओं के प्राण ले रहा था। धृष्टद्युम्न नए रथ में सवार होकर भीमसेन का यह रौद्र रूप देखकर गदगद हो गया। भीम ने इतने योद्धाओं को मृत्यु के घाट उतारा था कि वहाँ रक्त की एक नदी प्रवाहित होने लगी थी।
यह देखकर भीष्म, अर्जुन से लड़ना छोड़ भीम की ओर भागे। भीमसेन ने अपनी गदा उठाई और भीष्म की ओर बढ़कर धावा बोल दिया। भीमसेन की सहायता हेतु सात्यकि ने भीष्म के सारथी को अपने सायक बाण से मार गिराया। सारथी के मारे जाने के बाद भीष्म घोड़ों पर सवार होकर रणभूमि से बाहर हो गए, जिससे पाण्डव सेना में उत्साह का संचार हुआ।
युद्ध का समय अन्त की ओर पहुँच चुका था। दुर्योधन पुत्र लक्ष्मण और अभिमन्यु के मध्य भीषण युद्ध छिड़ा था। दूसरी ओर अर्जुन भी काल की भाँति कौरव सेना पर हाहाकार मचा रहा था।
सन्ध्या हो गई थी, दोनों ओर के सेनापतियों ने युद्ध बन्द होने का शंख बजाया। दूसरे दिन कौरवों को हानि उठानी पड़ी और पाण्डव पक्ष प्रबल रहा।
अच्युतानंद मिश्र की क़लम से
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