रणभूमि अध्याय 07 - भीष्म की प्रतिज्ञा

रणभूमि अध्याय 07 - भीष्म की प्रतिज्ञा

साथियों मैं आपका सूत्रधार अनुज एक बार पुनः आपके बीच रणभूमि पॉडकास्ट लेकर उपस्थित हूँ। यदि आप बच्चों को महाभारत के इस युद्ध से परिचित कराना चाहते हैं तो आज ही playranbhoomi.com से रणभूमि: कुरुक्षेत्र बोर्ड गेम ख़रीद सकते हैं। पौराणिक चर्चाओं का लिए हमारे talk show कही-सुनी को यूट्यूब पर जाकर सुने और अपना ज्ञान वर्धन करें।

चलिए सातवें दिन के युद्ध का आरम्भ करते हैं।

समेटकर जटाओं में क्रोध की शिखाग्नि
मृत्यु की संभावनाएं समस्त आर पार कर
कृपाण की कटार की गाण्डीव के प्रहार की
सज्ज हूँ मैं कब से धार तेज़ तर्रार कर
 
भृकुटि पे ज्वाला धरे सोते हुए सिंह का
धैर्य आज़माने की कदापि मत सोचना
सुन लो सारे शत्रुओं ये याचनाएँ आख़िरी
आज मेरा मार्ग किसी हाल में ना रोकना

शिवांशु कमल नामदेव ने अपनी इन पंक्तियों में जो भाव कहे, ठीक ऐसे ही भाव सातवें दिन की शुरुआत में भीष्म ने दुर्योधन के सामने प्रस्तुत कर दिए थे। भीष्म ने दुर्योधन को आश्वासन दिया कि आज के दिन पाण्डव सेना को नाकों चने चबाने पर विवश कर दूंगा। इसके पश्चात भीष्म ने सेना को मण्डल व्यूह में तैनात किया। पूरी कौरव सेना अस्त्रों और शस्त्रों के साथ सजी हुई खड़ी थी। इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने वज्र व्यूह में अपनी सेना को तैनात किया। 

युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। आज दोनों सेनाएँ रक्त पिपासु हो चुकी थीं। आज के दिन अपने शत्रु को अधिक से अधिक क्षति पहुँचाने का उद्देश्य योद्धाओं की धमनियों में कूच कर चुका था। युद्ध के आरम्भ होते ही अर्जुन ने इंद्रास्त्र का प्रयोग करके कौरव सेना के व्यूह को भंग कर दिया और कई योद्धाओं को यमलोक का मार्ग दिखाया। ये देखकर भीष्म ने स्वयं अर्जुन पर आक्रमण किया। दूसरी ओर द्रोणाचार्य और विराट का भीषण संग्राम शुरू हो चुका थम जब द्रोण ने विराट के सारथी को मार दिया तो विराट पुत्र शंख ने विराट को अपने रथ पर बिठा लिया और दोनों पिता-पुत्र द्रोण का सामना करने लगे। परन्तु द्रोण के क्रोध के आगे आज किसी की एक ना चलने वाली थी। द्रोण ने विषधर सर्प के समान एक बाण प्रत्यंचा पर चढ़ाया और शंख की ओर छोड़ दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि बाण शंख  की छाती को चीरता हुआ उसका रक्त पीकर धरती में समा गया। शंख वहीं ढेर हो गया और भय के कारण विराट वहाँ से भाग खड़े हुए।

एक ओर शिखण्डी और अश्वत्थामा आपस में भिड़ चुके थे। जब अश्वत्थामा ने शिखण्डी का धनुष काट दिया तो शिखण्डी एक चमचमाती तलवार लेकर अश्वत्थामा की ओर भागा। इसके उत्तर में अश्वत्थामा ने शिखण्डी पर कई बाणों की वर्षा की लेकिन शिखण्डी ने सभी बाणों को तलवार से ही काट दिया।

परन्तु यह बात अधिक समय तक नहीं रह सकी और अश्वत्थामा ने शिखण्डी की ढाल और तलवार को भी काट दिया। इस पर क्रोधित होकर शिखण्डी ने तलवार अश्वत्थामा की ओर फेंक दी। कई बाणों से घायल होकर शिखण्डी सात्यकि के रथ पर बैठ गया। 

सात्यकि राक्षस अलम्बुष से लोहा ले रहा था। अलम्बुष ने राक्षसी माया से सात्यकि पर अनेकों बाणों की वर्षा कर दी। जिसके पश्चात सात्यकि का अद्भुत पराक्रम देखने मिला। सात्यकि ने अर्जुन से जो ऐन्द्रास्त्र की शिक्षा ली थी, उसका प्रयोग करने का समय आ चुका था। ऐन्द्रास्त्र का सन्धान करते ही अलम्बुष बुरी तरह घायल हो गया और भययुक्त वहाँ से भाग गया।

इसी तरह जब धृष्टद्युम्न ने अपने बाणों से दुर्योधन को घायल कर दिया तो शकुनि तुरन्त ही वहाँ पहुँचा और दुर्योधन को अपने रथ पर चढ़ा लिया। यही घटना भीमसेन और कृतवर्मा के युद्ध में भी हुई। भीमसेन ने कृतवर्मा के सारथी को मारकर उसे मृत पर्याय घायल कर दिया। जिससे कृतवर्मा को अपने साले वृषक के रथ पर सवार होकर वहां से जाना पड़ा।

जब राजकुमार विन्द और अनुविन्द अर्जुन पुत्र इरावान से भिड़े तो ऐसा भीषण युद्ध हुआ कि धूल के बादल छा गए। दोनों पक्षों ने एक दूसरे को अनेकों बाणों से बींध डाला। रथ टूट जाने की स्थिति में अनुविन्द, विन्द के रथ पर जाकर बैठ गया। दोनों ने इरावन पर इतने बाणों की वर्षा की कि सूर्य भी ढँक गया।

इसके उत्तर में नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावान ने उनके सारथी को मार दिया जिससे उनके घोड़े यहाँ-वहाँ भागने लगे। विन्द और अनुविन्द इरावान से युद्ध हार चुके थे।

इसी दौरान घटोत्कच ने भगदत्त पर आक्रमण कर दिया। इन्द्र जिस तरह ऐरावत पर सवार होकर असुरों का संहार करते हैं उसी तरह भगदत्त भी अपने हाथी पर सवार होकर घटोत्कच को घायल करने लगा। घटोत्कच ने अपने घोड़ों के मारे जाने के बाद भी रथ नहीं छोड़ा और भगदत्त का सामना करता रहा। परन्तु कुछ ही समय में भगदत्त ने घटोत्कच को हरा दिया जिससे भगदत्त का हाथ पाण्डव सेना को रौंदता हुआ यहाँ-वहाँ विचरने लगा।

मद्रराज शल्य नकुल और सहदेव से उलझे हुए थे। सहदेव ने अपने मामा शल्य पर अनेकों बाणों से हमला किया। परन्तु शल्य ने अपने भानजे के सभी बाणों को प्रसन्न होकर काट दिया। शल्य ने नकुल के चारों घोड़ों को मार गिराया जिससे नकुल को सहदेव के रथ पर बैठना पड़ा। सहदेव ने कुपित होकर एक बाण शल्य के ऊपर छोड़ा जिससे शल्य रथ के भीतर ही गिर पड़ा और मूर्छित हो गया। जिससे उसका सारथी तुरन्त ही उसे रणभूमि से दूर ले गया।

युधिष्ठिर ने अपने युद्ध कौशल का प्रमाण देते हुए श्रुतायु को पराजित कर दिया। युधिष्ठिर अत्यन्त क्रोधित होकर युद्ध कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो उनके क्रोध से तीनों लोक भस्म हो जाएँगे। युधिष्ठिर, श्रुतायु को पराजित करने के बाद कौरव सेना का संहार करने लगे।

वृष्णिवंशी चेकितान ने कृपाचार्य पर धावा बोला। परन्तु कृपाचार्य ने उसके सारथी तथा चारों घोड़ों को मार गिराया जिससे चेकितान गदा लेकर कृपाचार्य की ओर बढ़ा। कृपाचार्य ने अनेकों बाणों से चेकितान को छेद दिया। चेकितान ने अपने गदा को कृपाचार्य की ओर फेंक दिया जिसे कृपाचार्य ने बाणों से काट दिया। इसके बाद दोनों योद्धाओं ने तलवार लेकर एक-दूसरे से भिड़ जाने की ठानी। दोनों ने एक-दूसरे के शरीरों को यहाँ-वहाँ से काट दिया और मूर्छित होकर वहीं गिर पड़े। जिसके बाद करकर्ष ने चेकितान को और शकुनि ने कृपाचार्य को अपने रथ पर चढ़ा लिया।

अनेकों बाणों से छेदे जाने के बाद भी भूरिश्रवा ने धृष्टकेतु के सारथी और उसके घोड़ों को मार दिया। जिससे धृष्टकेतु उस रथ को छोड़कर शतानीक के रथ पर जा बैठा।

चित्रसेन, विकर्ण और दुर्मर्षण ने अभिमन्यु पर धावा बोला। जिसके उत्तर में अभिमन्यु ने उन्हें घायल कर दिया परन्तु भीम की प्रतिज्ञा के कारण अभिमन्यु ने धृतराष्ट्र पुत्रों को जीवित ही छोड़ दिया।

भीष्म पाण्डव सेना को बहुत अधिक क्षति पहुँचा रहे थे इसलिए कई पाण्डव योद्धाओं ने भीष्म की ओर कूच की और उन्हें घेर लिया। शिखण्डी ने जब भीष्म पर आक्रमण किया तो भीष्म ने शिखण्डी के धनुष को काट दिया परन्तु उस पर कोई बाण नहीं चलाया। इस पर युधिष्ठिर ने शिखण्डी को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया और जब शिखण्डी पुनः भीष्म पर धावा बोलने वाला था तभी शल्य ने उसका मार्ग रोक लिया। जब शल्य ने शिखण्डी पर अस्त्र का प्रयोग किया तो शिखण्डी ने वरुणास्त्र से उसका उत्तर दिया।

भीमसेन ने अपने पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए जयद्रथ को खदेड़ दिया परन्तु धृतराष्ट्र पुत्र चित्रसेन ने भीमसेन का संहार रोक दिया। इस दौरान भीष्म, युधिष्ठिर से युद्ध करने पहुँच गए। कुछ ही देर के भयंकर युद्ध के बाद युधिष्ठिर के घोड़े मारे गए और युधिष्ठिर नकुल के रथ पर सवार हो गए। जिस तरह पके हुए फल वृक्ष से स्वतः ही गिर जाते हैं उसी तरह भीष्म के बाणों से आहत होकर योद्धाओं के मस्तक धरती पर गिर रहे थे। सूर्य जैसे-जैसे पश्चिम दिशा की ओर बढ़ रहा था वैसे-वैसे युद्ध और भयानक रूप लेता जा रहा था। कई-कई योद्धा सूर्य की अन्तिम किरण तक युद्ध करते रहे और अन्ततः सातवें दिन के युद्ध का समापन हो गया।

इस दिन विराट के पुत्र शंख को वीरगति प्राप्त हुई।

साथियों आशा है आपको हमारा यह पॉडकास्ट पसन्द आ रहा होगा। इसी तरह की अन्य पौराणिक कहानियाँ सुनने के लिए आज ही सूत्रधार एप डाउनलोड करें। आपसे अगले बुधवार पुनः भेंट होगी तब तक के लिए धन्यवाद।

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