नमस्कार साथियों, मैं आपका सूत्रधार अनुज एक बार फिर से आपके बीच उपस्थित हूँ। रणभूमि शृंखला में अब तक पाँच दिनों का महाभारत युद्ध हम सुन चुके हैं। यदि आपने अभी तक पिछले एपिसोड नहीं सुने हैं तो अभी सूत्रधार को फॉलो करें और रणभूमि शृंखला का आनन्द लें। आप यदि इस तरह की अन्य पौराणिक कहानियाँ और भी सुनना चाहते हैं तो अभी सूत्रधार एप डाउनलोड करें। हम लगातार पुराणों से जुड़ी चर्चाएँ भी लाइव सेशन के माध्यम से करते रहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कीजिए और हर रविवार कही-सुनी शृंखला से ज्ञान के कुण्ड में डुबकी लगाइए।
चलिए फिर बिना किसी देरी के छठवें दिन के युद्ध का आरम्भ करते हैं।
छठवें दिन के लिए पाण्डव सेना की ओर से धृष्टद्युम्न ने युधिष्ठिर के आदेश पर मकरव्यूह की रचना की। सभी योद्धा मकर यानी मगरमच्छ के आकार में अलग-अलग अंगों के स्थान पर खड़े हो गए। इसके उत्तर में भीष्म ने कौरव सेना को क्रोंच व्यूह में तैनात किया। रणभेरियों और शंखनाद की ध्वनि के साथ ही छठवें दिन का युद्ध आरम्भ हो गया।
सभी योद्धा रक्त पिपासु होकर एक-दूसरे पर टूट पड़े। युद्ध की शुरुआत में ही द्रोण ने भीमसेन से लोहा लेने की ठानी और उसे घायल कर दिया। इसके अलावा द्रोण ने भीमसेन के सारथी को भी यमलोक की यात्रा करवा दी। जिस तरह आग रुई को भस्म कर देती है उसी तरह द्रोण भी पाण्डव सेना का संहार करने लगे। थोड़ी ही देर में दोनों व्यूह सैनिकों की उथल-पुथल से भंग होने लगे।
द्रोण द्वारा अपने सारथी के मारे जाने पर भीमसेन ने नए सारथी को अपने रथ पर बिठाया और धृतराष्ट्र के पुत्रों पर धावा बोल दिया। धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों ने भीमसेन को इस तरह घेरा जैसे सूर्य पर ग्रहण लगाने कई ग्रह एक साथ आ गए हों। लेकिन भीमसेन को इस बात का तनिक भी भय नहीं हुआ। भीमसेन अपने रथ से उतरा और गदा लेकर समरभूमि में बढ़ चला। भीमसेन तिनके की तरह योद्धाओं को तिल-तिल करके तोड़ने लगा।
भीमसेन ने कौरव सेना के भीतर जो मार्ग बनाया था, धृष्टद्युम्न उसी मार्ग से आगे बढ़ रहा था। उस मार्ग से निकलते हुए धृष्टद्युम्न ने भीमसेन द्वारा किए संहार को देखा। कई-कई युद्ध पशुओं के अंग छिन्न-भिन्न होकर पड़े हुए थे। योद्धाओं के शवों का ढेर जमा हो गया था।
भीमसेन के नेत्रों से अग्नि की ज्वालाएँ भभक रही थीं और उनके शरीर में अनेक बाण धँसे हुए थे। ये देखकर धृष्टद्युम्न ने भीमसेन को अपने रथ पर बिठाया और उनके बाण बाहर निकाले। परन्तु यह सहायता दुर्योधन को तनिक भी रास नहीं आई। उसने धृष्टद्युम्न के वध के लिए सेना को आदेश दिया। जिस तरह मेघ पर्वत पर बूँदें बरसाता है उसी तरह धृष्टद्युम्न पर चारों ओर से बाणों की वर्षा होने लगी। धृष्टद्युम्न ने सभी बाणों का उत्तर दिया और कौरव सेना पर प्रमोहनास्त्र का प्रयोग किया। जिससे कौरव सैनिक अपनी चेतना खोकर मोहित हो गए। इससे शेष सेना में भगदड़ मच गई।
दूसरी ओर द्रोण ने अपने बाणों से द्रुपद को बुरी तरह घायल कर दिया जिससे द्रुपद को समरभूमि से दूर हटना पड़ा। अपनी सेना को प्रमोहनास्त्र के वश में देखकर द्रोण उसी ओर बढ़ चले। सेना को मुक्त करने के लिए द्रोण ने प्रज्ञास्त्र का सन्धान किया जिससे सैनिकों की चेतना लौट आई।
अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, पाँचों केकय राजकुमार और धृष्टकेतु ने शुचिमुख व्यूह की रचना करके कौरव सेना पर आक्रमण कर दिया। प्रमोहनास्त्र से कौरव सेना अभी ठीक से उभर भी नहीं पाई थी कि अभिमन्यु के शुचिमुख व्यूह से उन पर पुनः आक्रमण हो गया।
द्रोण ने सबसे पहले धृष्टद्युम्न को घायल किया और उसके सारथी को मार दिया। धृष्टद्युम्न तुरन्त ही अभिमन्यु के रथ पर सवार हो गया लेकिन इतने में द्रोण ने शुचिमुख व्यूह को तहस-नहस कर दिया। भीमसेन पुनः अपने रथ पर सवार होकर युद्ध क्षेत्र में चल पड़ा।
भीमसेन के मार्ग का अनुसरण करते हुए अभिमन्यु और शेष 12 महारथी धृतराष्ट्र के पुत्रों पर टूट पड़े। दुर्योधन ने भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उस पर धावा बोल दिया। भीमसेन और दुर्योधन ने आग की लपटों के समान भयंकर बाणों का सन्धान किया।
दुर्योधन के रथ के घोड़े यमलोक पहुँच गए, उसका छत्र धरती पर गिर गया और दुर्योधन बुरी तरह से घायल हो गया। ये देखकर कृपाचार्य ने तुरन्त ही दुर्योधन को अपने रथ पर बिठा लिया। अभिमन्यु ने विकर्ण को बुरी तरह से घायल करके उसके सारथी को मार दिया। दुर्मुख ने श्रुतकर्मा की भी यही दशा की। जिसके उत्तर में श्रुतकर्मा ने एक भयंकर शक्ति चलाई जो दुर्मुख के कवच को छेदती हुई उसका रक्त पीने लगी।
सुतसोम ने तुरन्त ही श्रुतकर्मा को अपने रथ पर बिठा लिया और वहाँ से चला गया। श्रुतकीर्ति ने धृतराष्ट्र पुत्र जयत्सेन पर धावा बोल दिया और नकुलपुत्र शतानीक ने भी जयत्सेन को बुरी तरह से घायल कर दिया। यह देखकर धृतराष्ट्र पुत्र दुष्कर्ण ने शतानीक पर आक्रमण कर दिया। जिस तरह तड़ित वृक्षों पर गिरकर उसे धूल कर देती है उसी तरह दोनों योद्धा एक-दूसरे को भस्म कर देने की लालसा लेकर भिड़ गए।
दोनों पक्षों की कितनी-कितनी सेना यमलोक पहुँच गई। कितने ही योद्धा घायल हो गए। इसी के साथ युद्ध विराम की घोषणा हुई और दोनों पक्ष अपने-अपने शिविर में वापस लौट गए।
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